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ahmad faraz shayari in hindi| अहमद फराज शायरी इन हिंदी

 ahmad faraz shayari in hindi| अहमद फराज शायरी इन हिंदी

अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें

जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिले


Ab Ke Hum Bichre Toh Shayad Kabhi Khwabon Me Mile

Jis Tarah Sookhe Hue Pholl Kitaabon Me Mile

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आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा

वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा


Aankho Se Door N Ho Dil Se Utar Jayega

Wakt Ka Kya Hai Guzarata hai Guzar Jayega

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ज़िंदगी से यही गिला है मुझे

तू बहुत देर से मिला है मुझे

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इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ

क्यूँ न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएँ

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और ‘फ़राज़’ चाहिएँ कितनी मोहब्बतें तुझे

माओं ने तेरे नाम पर बच्चों का नाम रख दिया

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हम को अच्छा नहीं लगता कोई हमनाम तिरा

कोई तुझ सा हो तो फिर नाम भी तुझ सा रक्खे

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किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंज़िल

कोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा

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अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएँ हम

ये भी बहुत है तुझ को अगर भूल जाएँ हम

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Ahmad Faraz Shayari In Hindi | अहमद फ़राज़ की शायरी

बंदगी हम ने छोड़ दी है ‘फ़राज़’

क्या करें लोग जब ख़ुदा हो जाएँ

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उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ

अब क्या कहें ये क़िस्सा पुराना बहुत हुआ

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चला था ज़िक्र ज़माने की बेवफ़ाई का

सो आ गया है तुम्हारा ख़याल वैसे ही

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अब नये साल की मोहलत नहीं मिलने वाली

आ चुके अब तो शब-ओ-रोज़ अज़ाबों वाले


Ab Naye Saal Ki Mohlat Nahi Milne Waali

Aa chuke Ab To shab-O-Roz Ajaabo Waale

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अब तो सब दश्ना-ओ-ख़ंज़र की ज़ुबाँ बोलते हैं

अब कहाँ लोग मुहब्बत के निसाबों वाले


Ab To Sab Dashna-O-Khanjar Ki Jubaan Bolte Hai

Ab Kaha Log Mohabbat Ke Nisabo waale

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ज़िन्दा रहने की तमन्ना हो तो हो जाते हैं

फ़ाख़्ताओं के भी किरदार उक़ाबों वाले


Zinda Rehne Ki Tamanna Ho To Ho Jaate Hai

Faakhtao Ke Bhi Kirdaar Ukaabo Waale

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न मेरे ज़ख़्म खिले हैं न तेरा रंग-ए-हिना

मौसम आये ही नहीं अब के गुलाबों वाले


N Mere Zakhm Khile Hai N Tera Rang-E-Hina

Mausam Aaye Hi Nahi Ab Ke Gulaabo Waale

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आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा

वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा


इतना मानूस न हो ख़िल्वत-ए-ग़म से अपनी

तू कभी ख़ुद को भी देखेगा तो डर जाएगा


तुम सर-ए-राह-ए-वफ़ा देखते रह जाओगे

और वो बाम-ए-रफ़ाक़त से उतर जाएगा


किसी ख़ंज़र किसी तलवार को तक़्लीफ़ न दो

मरने वाला तो फ़क़त बात से मर जाएगा


ज़िन्दगी तेरी अता है तो ये जानेवाला

तेरी बख़्शीश तेरी दहलीज़ पे धर जाएगा


डूबते-डूबते कश्ती को उछाला दे दूँ

मैं नहीं कोई तो साहिल पे उतर जाएगा


ज़ब्त लाज़िम है मगर दुख है क़यामत का “फ़राज़”

ज़ालिम अब के भी न रोयेगा तो मर जाएगा

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Ankh Se Door Na Ho Dil Se Utar Jayega

Wakt Ka Kya Hai Guzarta Hai Guzar Jayega


Itna Manoos Na Ho Khilwat-E-Gum Se Apni

Tu Kabhi Khud Ko Bhi Dekhega To Darr Jayega


Tum Sar-E-Raah-E Wafa Dekhte Reh Jaaoge

Aur Wo Baam-E-Rafaqat Se Utar Jayega


Kisi Khanjar Kisi Talwaar Ko Takleef Naa Do

Marne Waala To Fakat Baat Se Mar Jayega


Zindgi Teri Ata Hai To Ye Jaane waala

Teri Bakhshish Teri Dehleej Pe Dhara Reh Jayega


Doobte-Doobte Kashti Ko Uchala De Du

Mai Nahi Koi To Sahil Pe Utar Jayega


Zabt Lazim Hai Magar Dukh Hai Kayamat Ka “Faraaz”

Zaalim Ab Ke Bhi Na Royega Toh Mar Jayega


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