Romantic Shayari | रोमांटिक शायरी | romantic Wife Hindi Shayari
शर्म, दहशत, झिझक, परेशानी,
नाज़ से काम क्यूँ नहीं लेतीं;
ये आप, वो, जी, मगर ये सब क्या है,
तुम मेरा नाम क्यूँ नहीं लेती।
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नाज़ से काम क्यूँ नहीं लेतीं;
ये आप, वो, जी, मगर ये सब क्या है,
तुम मेरा नाम क्यूँ नहीं लेती।
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ए दर्द मुझे तेरा ही सहारा है
जख्मो के सिवा अब कौन हमारा है
लोग डरते है मौत के आ जाने से
हमें तो जिंदगी ने ही मारा है।
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जब से तुम गए हो फिर सुबह हुई ही नहीं,
कम्बख़्त रात ही होती रही हर रात के बाद!!
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मैं पसंद नहीं अगर
तो इतना वक्त क्यों बिताते हो,
मैं औरों से अलग नहीं
तो सिर्फ़ मुझको क्यों सताते हो,
रिश्तों में नहीं बंधना अगर
तो इतना हक़ क्यों जताते हो,
फर्क नहीं पड़ता मेरे फैसलों से
तो मुझसे उम्मीद क्यों लगाते हो,
डरते नहीं मुझे खोने से अगर
तो बेवजह फ़िक्र क्यों दिखाते हो।
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इतने बैचेन, इतने बेकरार क्यूँ हैं,
लोग जरूरत से ज़्यादा होशियार क्यूँ हैं..
सब को सब की ख़बर चाहिए
सब चलते फिरते अखबार क्यूँ हैं.. ??
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"दिल में कोई और बसा तो नहीं,
ये चाहत इश्क की ज्यादा तो नहीं,
सब मुझे चाहने लगे हैं....,
कहीं मुझ में तुम्हारी कोई अदा तो नहीं..!"
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मिलकर भी तुझसे हसरत-ए-मुलाकत रह गई,
ऐसा लगा बादल तो घर आये, पर बरसात रह गई...
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मिजाज बदलती रही जिंदगी,
कभी तोड़ा तो कभी सवार दिया।
जब जब सोचा तुझे,
लफ़्ज़ों में ढाल कर ग़ज़ल में उतार दिया।।
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समय के साथ सबकुछ बदल जाए,
कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता मेरे दोस्त
बस तुम कभी मत बदलना
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🍂🍂 तुम्हारी यादों की तपिश में जल रहें हैं...
सच कहूं तो...ना जी रहे हैं..
ना मर रहे हैं ....!
रातों की नींद... दिन का चैन ...
सब कुछ तुम्हारे....
पास गिरवी रह गया .....!
हमारे पास बस एक....
अन्तहीन इंतजार रह गया...🍂🍂
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तुने तो खुद सुनी थी, सीने से लग के धडकनें मेरी..
कितना डरता हूँ तुझे खोने के ख्याल से...!!
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बहुत देर कर दी तुमने धड़कने महसूस करने में
वो दिल नीलाम हो गया जिस पर हुकूमत तुम्हारी थी !!
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मुझे याद है कभी एक थे मगर आज हम हैं जुदा जुदा
वो जुदा हुए तो संवर गए,हम जुदा हुए तो बिखर गए
कभी अर्श पर कभी फर्श पर,कभी उनके दर कभी दर ब दर
ग़म ए आशिक़ी तेरा शुक्रिया,हम कहां कहां से गुज़र गए
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लहजे में बदजुबानी
चेहरे पे नकाब लगाए फिरते हैं
जिनके खुद के बही-खाते
बिगड़े पड़े हैं
वो मेरा हिसाब लिए फिरते हैं___!!
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बिगड़े पड़े हैं
वो मेरा हिसाब लिए फिरते हैं___!!
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अए हवा उड़ा के ज़ुल्फें उनकी सूरत को न छुपा
बाद मुद्दत के मेरा हमनशीं यूँ बे-नक़ाब आया है.
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सुनो...
चलो आज खत्म करें ये रस्म-ए-ताल्लुक भी..
मैं भी क्यों बेचैन रहूँ...तुम भी क्यों बदगुमाँ रहो.!
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मुद्दतों बाद भी नहीं मिलते हम जैसे नायाब लोग
तेरे हाथ क्या लग गए तुमने तो हमे आम समझ लिया !!
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उसका बिछड़ना कोई आम वाकिया नहीं था ,
यार कई बरस लगे खुद को यकीन दिलाते हुए ,
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"मोहब्बत" की तरह
"नफरत" का भी साल में एक ही दिन तय कर दो
ये रोज़-रोज़ की नफरतें अच्छी नहीं लगतीं.
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साहिल के तलब गार यह पहले से जान लें,
दरिया-ए-मुहब्बत में किनारे नहीं होते
समशान के बाहर लिखा था,
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"मंज़िल तो तेरी यही थी..
ज़िन्दगी बीत गई तुझे यहां आते आते,
क्या मिला मतलबी ज़माने से,
अपनो ने ही जला दिया तुझे जाते जाते.."
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दिखाकर हुस्न का जलवा सितम आबाद कर डाला.
हसीनों ने जिसे चाहा उसे बर्बाद कर डाला.🥺