Mirza Ghalib Shayari In Hindi English | मिर्जा गालिब शायरी हिंदी में
इश्क़ से तबीअत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया,
दर्द की दवा पाई दर्द-ए-बे-दवा पाया।
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इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ‘गालिब’
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे !
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इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना,
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना।
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ghalib ki shayari
बेख़ुदी बे सबब नहीं 'ग़ालिब',
कुछ तो है जिस की पर्दा-दारी है।
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रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल,
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है।
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दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ,
मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ।
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mirza ghalib shayari
मैं नादान था जो वफा को तलाश करता रहा ग़ालिब,
यह न सोचा की,
एक दिन अपनी साँस भी बेवफा हो जाएगी !
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करने गए थे उस से तग़ाफ़ुल का हम गिला,
की एक ही निगाह कि बस ख़ाक हो गए।
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ग़ालिब' बुरा न मान जो वाइज़ बुरा कहे ,
ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे।
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ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता,
अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता।
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ghalib shayari on love
हुई मुद्दत कि 'ग़ालिब' मर गया पर याद आता है,
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता।
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इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा,
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं।
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लोग कहते है दर्द है मेरे दिल में,
और हम थक गए मुस्कुराते मुस्कुराते !
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ghalib shayari
मेरी क़िस्मत में ग़म गर इतना था,
दिल भी या-रब कई दिए होते।
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रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल,
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है।
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हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन,
दिल के खुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है।
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इसलिए कम करते हैं जिक्र तुम्हारा,
कहीं तुम खास से आम ना हो जाओ !
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galib ki shayari in hindi
मरते हैं आरज़ू में मरने की,
मौत आती है पर नहीं आती।
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हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है,
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज-ए-गुफ़्तगू क्या है !
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ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह,
कोई चारासाज़ होता कोई ग़म-गुसार होता।
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हाथों की लकीरों पे मत जा ऐ गालिब,
नसीब उनके भी होते है जिनके हाथ नहीं होते !