मोहब्बत की गम भरी शायरी | mohabbat ki gum bhari shayari
कुछ लोग जिस्म परोसकर... मशहूर हो रहे हैं आज़कल...
वही कुछ लोग कहते हैं हम कपड़ो से... किसी को आँक नहीं सकते...!!
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पसंद है हमें सच बोल देना... राय पूछे जानें पर...
रिश्ते जो ग़लत तारीफ़ से शुरू होते हैं... वो याद नहीं रहते आख़िर में...!!
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हम थोड़े वही हैं...थोड़े बदल गए हैं...
पहले पूरा जिंदा थे... अब आधे मर गए हैं...!!
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अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं............
रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं.............
-निदा फ़ाज़ली
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कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त..........
सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया..........
-साहिर लुधियानवी
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इंसां की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहीं................
दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बाद................
-कैफ़ी आज़मी
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खौफ़ नहीं... है उनका...
पर उनका ख़याल है कि... हमें किसी औऱ को निहारने की इजाज़त नहीं देता...!!
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चुभ जातीं थी...
उनकी बातें पहले...
वरना उनसे बात करनें में कोई...
परहेज नहीं हमें...!!
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गर ये समझते हैं आप की किसी औऱ से इश्क़ करनें लगेंगे हम...
अफ़सोस की आप अभी हमें समझ नहीं पाए...!!
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कोई मुफ्त में भी दे मत लेना..
दिल अभी और सस्ते होंगे..!